“पंजाब के श्रमिकों ने जताया हिरासत में यातना का आरोप, जम्मू–कश्मीर हाईकोर्ट ने पुलिसकर्मियों को नोटिस जारी किया”

Report by: Kiran Prakash Singh

 

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पंजाब के दो मज़दूरों द्वारा लगाए हिरासत में यातना के आरोप मामले में कई पुलिसकर्मियों को नोटिस जारी किया है. दो मज़दूरों ने एक याचिका में आरोप लगाया था कि उन्हें हिरासत में ‘यातना’ दी गई और सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए हिरासत में रखा गया |

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दोनों मजदूरों ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उन्हें हिरासत में ‘यातना’ दी गई थी और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए हिरासत में रखा गया |

 

यह याचिका पठानकोट निवासी सुकर दीन और फरीद मोहम्मद ने दायर की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि पुलिसकर्मियों ने 30 जून की दोपहर को बसोहली में अटल सेतु पर उन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया और हिरासत में उन्हें ‘क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित’ किया |

 

उनके वकील शेख शकील अहमद ने न्यायालय का ध्यान अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों की ओर आकर्षित किया, जिसमें कहा गया था कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे मामलों में हिरासत में नहीं लिया जाएगा/गिरफ्तार नहीं किया जाएगा जिनमें कारावास की अवधि सात वर्ष तक है |

 

उन्होंने दलील दी कि इन पुलिसकर्मियों ने अपने ‘अवैध कृत्य’ को सही ठहराने के लिए दोनों व्यक्तियों के खिलाफ झूठी और बेबुनियाद एफआईआर दर्ज की;

 

उन्होंने याचिकाकर्ताओं को कथित तौर पर ‘पुलिस यातना’ के दौरान लगी चोटों की तस्वीरें भी पेश कीं,

 

उन्होंने बाओली के मुंसिफ (न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी) भानु भसीन के आदेश का भी हवाला दिया, जब 30 जून को पुलिस द्वारा याचिकाकर्ताओं को अदालत में पेश किया गया था और उनकी पांच दिन की पुलिस रिमांड मांगी गई थी |

 

याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि मुंसिफ ने पाया था कि रिमांड आवेदन के साथ संलग्न उनकी मेडिकल जांच रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर ने आरोपियों को चिकित्सकीय रूप से फिट नहीं पाया था और डॉक्टर ने दोनों आरोपियों की चोटों का उल्लेख किया था |

 

अहमद ने बताया कि दोनों आरोपियों की बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए न्यायाधीश ने उन्हें पुलिस हिरासत के बजाय पांच दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था |

 

गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में यातना के एक मामले को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसके बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक कॉन्स्टेबल की पत्नी का लगभग 30 महीने चला क़ानूनी संघर्ष समाप्त हुआ. कॉन्स्टेबल को 2023 की सर्दियों में कुपवाड़ा के एक पूछताछ केंद्र में हिरासत में प्रताड़ित किया गया था |

 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ सुनवाई कर रही थी, जिसने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घटना की 90 दिनों की जांच का आदेश दिया और सीबीआई को एक महीने के भीतर आरोपी पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया है |

 

पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा पीड़ित को देने का आदेश दिया, जिसकी वसूली आरोपी अधिकारियों के वेतन से की जाएगी |

 

इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा, ‘हिरासत में क्रूर और अमानवीय यातना से जुड़े इस मामले की अभूतपूर्व गंभीरता पुलिसिया अत्याचार के सबसे बर्बर उदाहरणों में से एक है, जिसका बचाव करने और उसे छिपाने की कोशिश राज्य अपनी पूरी ताकत से कर रहा है.’

 

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ‘यह केवल जांच में त्रुटि या अतिक्रमण का मामला नहीं है; यह आरोप गढ़ने, कहानी को विकृत करने और हिरासत में यातना के असली अपराधियों को बचाने का एक सुनियोजित प्रयास है |

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