विंग्स ऑफ फायर से लेकर दिलों का सम्राट बनने तक

Report By: Kiran Prakash Singh

“सपने वो नहीं होते जो आपको रात में नींद में आएं लेकिन सपने वे होते हैं जो रात में सोने ना दें”

ऐसी बुलंद सोच और अग्नि सरीखी ऊँची उड़ान रखने वाले मिसाइलमैन कलाम ही थे जिन्हें जनता का राष्ट्रपति यूँ ही नहीं कहा जाता था, उनका जीवन सादगी, समर्पण और देशभक्ति का प्रतीक है,एक वैज्ञानिक, शिक्षक, लेखक और भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने न केवल विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि लाखों युवाओं को सपने देखने और उन्हें साकार करने की प्रेरणा भी दी।

अपने राष्ट्रपति पद के 5 बरस के कार्यकाल में डॉ. अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम ने अन्य राष्ट्रपति के कार्यकालों के मुकाबले न केवल अमिट छाप छोड़ी बल्कि ऐसी मिसाल भारतीय राजनीती में दूर -दूर तक देखने को नहीं मिलती, डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति पद के दरवाजे ना केवल आम आदमी के लिए ही नहीं खोले बल्कि समाज के हर तबके को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की, अपनी सादगी से उन्होंने पूरे देश की जनता का दिल जीता, डॉ. कलाम की शख्सियत ही यूँ थी कि हर कोई उनका मुरीद हो जाता था।

राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी वह आम इंसान की तरह सादगी में रहते थे, वह देश के उन सम्मानित व्यक्तियों में से एक थे, जिन्होंने एक वैज्ञानिक और एक राष्ट्रपति के रूप में अपना अमूल्य योगदान देकर देश सेवा की, राष्ट्रपति पद पर अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद से डॉ. कलाम शिलांग, अहमदाबाद और इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थानों तथा देश एवं विदेश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे।

डॉ. कलाम ने राष्ट्राध्यक्ष रहते हुए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम जन के लिए खोल दिए जहां बच्चे उनके विशेष अतिथि होते थे, वे हमेशा शिक्षा और नवाचार को बढ़ावा देने की बात करते थे, उनकी दृष्टि थी कि भारत 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बने, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक विजन 2020 में विस्तार से व्यक्त किया,15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में पैदा हुए अब्दुल कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलोजी से स्नातक करने के बाद भौतिकी और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और फिर उसके बाद रक्षा शोध एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से जुड़ गए।

उनका बचपन भी बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा, प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया। वहां की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिन्नापल्ली में प्रवेश लिया, वहां से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बीएससी की डिग्री प्राप्त की, अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई का रुख किया, वहां पर उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया।

कलाम की इच्छा थी कि वे वायु सेना में भर्ती हों तथा देश की सेवा करें, यह इच्छा पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद का चुनाव किया, वहां पर उन्होंने 1958 में तकनीकी केन्द्र सिविल विमानन में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला, उन्हीं दिनों इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से ‘‘उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम’ की शुरुआत हुई, कलाम को इस योजना का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया जिसे उन्होंने अंजाम तक पहुंचाया।

जुलाई 1980 में ‘‘रोहिणी”उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को ‘‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब’ के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया, उनकी देखरेख में भारत ने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों का विकास किया जिसने भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया, इसके अलावा, उन्होंने 1980 में ही एसएलवी थर्ड के सफल प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने भारत को अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपण की क्षमता प्रदान की।

डॉ. कलाम ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से रक्षामंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के मार्गदर्शन में ‘‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की शुरुआत की। इस योजना के अंतर्गत ‘‘त्रिशूल’ ‘‘आकाश’, ‘‘नाग’, ‘‘अग्नि’ एवं ‘‘ब्रह्मोस’ मिसाइलें विकसित हुई, डॉ. कलाम ने जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा डीआरडीओ के सचिव के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान की, उन्होंने भारत को ‘‘सुपर पॉवर’ बनाने के लिए 11 मई और 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण किया, इस प्रकार भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की और यह डॉ.कलाम की ही रणनीति थी, कि पोकरण विस्फोटों की भनक अमरीका तक को नहीं लगी और परीक्षण सफल हुआ।

डॉ. कलाम नवम्बर 1999 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे और फिर 25 जुलाई 2002 को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बने, उनका कार्यकाल उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव के लिए जाना जाता है, उन्होंने राष्ट्रपति भवन को जनता का भवन बनाया और विशेष रूप से युवाओं के साथ हर दिन समय बिताया, वे 25 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे, उनको पहली बार राष्ट्रपति बनाने में नेताजी ने मास्टर स्ट्रोक उस दौर में चला था जब तत्कालीन दौर के वामपंथी दल और विपक्ष एनडीए के इस फैसले के साथ गया था। दूसरी कार्यकाल के लिए सबसे पहले नेताजी ने तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के साथ डॉ. कलाम को राष्ट्रपति बनाने की बात सामने रखी थी लेकिन कांग्रेस की पसंद प्रणव मुखर्जी थे और वह डॉ.कलाम के साथ नहीं थी। डॉ. कलाम को दूसरे कार्यकाल की कोई चाह नहीं थी लेकिन करोङों प्रशंसकों का दिल उन्होनें नहीं तोड़ा और अपने दूसरे कार्यकाल के चयन पर सभी दलों की सम्मति को जरूरी बताया लेकिन कांग्रेस शायद उन्हें दूसरा कार्यकाल न देने एक मन शायद बना चुकी थी।

उनकी जीवनी ‘‘विंग्स ऑ फायर’ और तेजस्वी मन आज भी भारतीय युवाओं और बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय पुस्तक है, डॉ. कलाम की लिखी पुस्तकों में ‘‘गाइडिंग सोल्स : डायलॉग्स ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ’ एक गंभीर कृति है। इनके अतिरिक्त उनकी अन्य चर्चित पुस्तकें ‘‘इग्नाइटेड माइंड्स : अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’ ‘‘एनिवजनिंग अन एमपार्वड नेशन : टेक्नोलॉजी फॉर सोसायटल ट्रांसफारमेशन’, ‘‘डेवलपमेंट्स इन फ्ल्यूड मैकेनिक्सि एण्ड स्पेस टेक्नालॉजी’, ‘‘2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम’ सह लेखक- वाईएस राजन, ‘‘इनिवजनिंग ऐन इम्पॉएर्वड नेशन : टेक्नोलॉजी फॉर सोसाइटल ट्रांसफॉरमेशन’ सह लेखक- ए सिवाथनु पिल्ललई बेस्टसेलर रही हैं।

डॉ. कलाम ने तमिल भाषा में कविताएं भी लिखी जो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं, उनकी कविताओं का एक संग्रह ‘‘द लाइफ ट्री’ के नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुआ है, डॉ. कलाम की योग्यता के दृष्टिगत सम्मान स्वरूप उन्हें अन्ना यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, कल्याणी विश्वविद्यालय , हैदराबाद विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, मैसूर विश्वविद्यालय, रूड़की विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय, आंध्र विश्वविद्यालय, भारतीदासन छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, तेजपुर विश्वविद्यालय, कामराज मदुरै विश्वविद्यालय, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई, आईआईटी कानपुर, b, इंडियन स्कूल ऑफ साइंस, सयाजीराव ऑफ बड़ौदा, मनीपाल एकेडमी ऑफ हॉयर एजुकेशन ने अलग-अलग ‘‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की मानद उपाधियां प्रदान की।

जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय हैदराबाद ने तो उन्हें ‘‘पीएचडी’ तथा विश्वभारती शान्ति निकेतन और डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विविद्यालय औरंगाबाद ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की मानद उपाधियां प्रदान की, इनके साथ वे, इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज बेंग्लुरू, नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस नई दिल्ली के सम्मानित सदस्य, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एंड टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियर्स के मानद सदस्य, इजीनियरिंग स्टॉफ कॉलेज ऑफ इंडिया के प्रोफेसर तथा इसरो के विशेष प्रोफेसर रहे।

डॉ. कलाम को नेशनल डिजाइन अवार्ड-1980 (इंस्टीटयूशन ऑफ इंजीनियर्स भारत), डॉ. बिरेन रॉय स्पेस अवार्ड-1986 (एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया), ओम प्रकाश भसीन पुरस्कार, राष्ट्रीय नेहरू पुरस्कार-1990 (मध्य प्रदेश सरकार), आर्यभट्ट पुरस्कार-1994, प्रो. वाई नयूडम्मा मेमोरियल गोल्ड मेडल-1996, जीएम मोदी पुरस्कार-1996, एचके फिरोदिया पुरस्कार-1996, वीर सावरकर पुरस्कार-1998 आदि मिले, उन्हें राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार (1997) भी प्रदान किया गया, भारत सरकार ने उन्हें क्रमश: पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) एवं ‘‘भारत रत्न’ सम्मान (1997) से भी विभूषित किया गया।

 

राष्ट्रपति के रूप में डॉ. कलाम की पहचान अलहदा थी, अपनी अनोखी संवाद शैली के चलते डॉ. कलाम अपने भाषणों में बच्चों को हमेशा शामिल करते थे, व्याख्यान के बाद वह अक्सर छात्रों से उन्हें पत्र लिखने को कहते थे और प्राप्त होने वाले संदेशों का हमेशा तुरंत जवाब देते थे, वीआईपी की परम्पराओं को तोड़कर हर बार मंच से नीचे उतरकर बच्चों से हाथ मिलाने चले जाते थे, अपने कार्यकाल में लाभ के पद संबंधी विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करके यह साबित कर दिया था कि वह एक ‘‘रबर स्टैम्प’ राष्ट्रपति नहीं हैं, इतना कुछ होने के बाद भी बतौर राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में कई आलोचना का भी सामना करना पड़ा।

डॉ.कलाम ने अपने पांच साल के कार्यकाल में 21 में से केवल एक दया याचिका पर कार्रवाई की और बलात्कारी धनंजय चटर्जी की याचिका को नामंजूर कर दिया जिसे बाद में फांसी दी गई, यही नहीं, उन्होंने संसद पर आतंकवादी हमले में दोषी करार दिए जाने के बाद मौत की सजा पाने का इंतजार कर रहे अफजल गुरु की दया याचिका पर फैसला लेने में देरी को लेकर अपने आलोचकों को जवाब दिया और कहा कि उन्हें सरकार की ओर से कोई दस्तावेज नहीं मिला जिसके चलते वह कोई कदम नहीं उठा सके।

बिहार में वर्ष 2005 में राष्ट्रपति शासन लगाने के विदेश से लिए गए अपने विवादास्पद फैसले पर भी उनको बड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, हालांकि उन्होंने यह कहते हुए आलोचनाओं को खारिज कर दिया कि उन्हें कोई अफसोस नहीं है।

राष्ट्रपति पद से विदाई के बाद डॉ. कलाम रिटायर और टायर्ड नहीं हुए, तकरीबन 300 से भी ज्यादा कालेजों और स्कूल में वह अपना लेक्चर देने गए, उनके जीवन में 2011 में एक मौका ऐसा भी आया जब अमरीका के एयरपोर्ट में पूर्व राष्ट्रपति होने के बाद भी उनकी सघन तलाशी ली गयी जहाँ उनके कपड़े उतारे जाने की घटना से पूरा देश आहत हुआ था लेकिन डॉ. कलाम ने इस पर कुछ भी नहीं कहा।

यह उनकी महानता और जीवटता थी जो उन्हें महामहिम सरीखे शिखर पर ले गई और हमेशा आम इंसान की तरह बेरोकटोक अपना काम समर्पित भाव से करते रहे, डॉ.कलाम ने अपने कार्यकाल में कई राजसी परम्पराओं को तोड़ा, महामहिम होते भी वह सादा जीवन थे, पूरा देश मानो उनका परिवार था।

इस जेनरेशन के बच्चों क़े लिए डॉ. कलाम ही आईकन थे, बच्चों से खुलकर बातें करना, उनको पढ़ाना उन्हें बहुत अच्छा लगता था और संयोग देखिये शिलांग में 27 जुलाई 2015 की शाम डॉ. कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में एक व्याख्यान दे रहे थे तब दिल का दौर पड़ने से वे बेहोश हो कर गिर पड़े जिससे उनकी साँसों की डोर हमेशा थम गई और पूरा देश महान वैज्ञानिक के निधन से शोक संतप्त हो गया।

बेशक उनके निधन से देश ने महान वैज्ञानिक खो दिया है, लेकिन इतिहास के पन्नों में वह जनता के राष्ट्रपति के रूप में वह आज भी हमारे दिलों में हमेशा अमर रहेंगे, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने कार्यों और विचारों से भारत को नई दिशा दी, उनकी सादगी, दृढ़ संकल्प और देश के प्रति प्रेम हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है, वे न केवल एक वैज्ञानिक या राष्ट्रपति थे बल्कि एक ऐसे शिक्षक थे जिन्होंने हमें सपने देखने और उन्हें सच करने का साहस दिया।

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