Report By: Kiran Prakash Singh
लोकसभा में प्रियंका गांधी का तीखा हमला: “आतंकवाद पर राजनीति बंद करें, जवाबदेही तय हो”
नई दिल्ली, 29 जुलाई 2025:
लोकसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चल रही चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा का संबोधन चर्चा का केंद्र बन गया, आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर उन्होंने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए सत्तापक्ष पर राजनीति करने और जवाबदेही से भागने का आरोप लगाया, उनके भावनात्मक और सटीक तर्कों से भरा भाषण सुनकर सदन कुछ क्षणों के लिए शांत हो गया।
“यूपीए ने दिखाई थी निर्णायकता, राजनीति नहीं”
प्रियंका गांधी ने कहा कि यूपीए सरकार ने कभी आतंकवाद के खिलाफ कमजोरी नहीं दिखाई, उन्होंने 2008 के मुंबई हमलों का जिक्र करते हुए बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में तत्काल कार्रवाई हुई थी, अधिकांश आतंकवादियों को मौके पर मार गिराया गया और अजमल कसाब को कानूनी प्रक्रिया के तहत 2012 में फांसी दी गई।
उन्होंने सवाल उठाया कि यदि यूपीए सरकार पर हमलों के लिए निशाना साधा जा रहा है, तो फिर राजनाथ सिंह, जो उड़ी, पठानकोट और पुलवामा हमलों के समय गृहमंत्री थे, अब रक्षा मंत्री कैसे बने रह सकते हैं?
“जब मणिपुर जल रहा था, तब गृहमंत्री कहां थे?”
प्रियंका गांधी ने कहा कि आज भी देश में गंभीर आतंकी घटनाएं और आंतरिक अस्थिरता जारी है, फिर भी गृहमंत्री अमित शाह पद पर कायम हैं। उन्होंने दिल्ली दंगों और मणिपुर की हिंसा का उदाहरण देते हुए सवाल किया कि इन घटनाओं की जिम्मेदारी कौन लेगा?
“मेरी मां के आंसू गिनाए, लेकिन जवाब नहीं दिया”
सदन में प्रियंका का स्वर तब भावुक हो गया जब उन्होंने कहा कि जब पाकिस्तान को शरण देने के सवाल पर गृहमंत्री से जवाब मांगा गया, तो वे इतिहास की ओर भाग गए — नेहरू, इंदिरा और सोनिया गांधी का जिक्र करने लगे। उन्होंने कहा, “मेरी मां के आंसू गिनाए गए, लेकिन सवाल का जवाब नहीं मिला कि आपने युद्ध क्यों रोका?”
प्रियंका ने आगे कहा, “मेरी मां के आंसू तब गिरे थे जब मेरे पिता राजीव गांधी को आतंकवादियों ने शहीद कर दिया था, वे उस वक्त सिर्फ 44 साल की थीं। मैं इस सदन में जब 26 शहीदों की बात करती हूं, तो इसलिए क्योंकि मैंने स्वयं इस पीड़ा को जिया है।”
सदन में पसरा सन्नाटा
प्रियंका गांधी के इस भावनात्मक और सशक्त भाषण के बाद कुछ देर के लिए सदन में सन्नाटा छा गया, उन्होंने अपने शब्दों से सत्ता पक्ष को न केवल कटघरे में खड़ा किया, बल्कि आतंकवाद जैसे गंभीर विषय पर राजनीति से ऊपर उठकर संवेदनशीलता और जवाबदेही की जरूरत पर जोर दिया।
प्रियंका गांधी वाड्रा का यह संबोधन न सिर्फ विपक्ष की आवाज को मजबूती देता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है, कि आतंकवाद जैसे मुद्दों पर राजनीतिक बयानबाजी से ऊपर उठकर जवाबदेही और ईमानदार चर्चा की जरूरत है। अब देखना है कि सत्ता पक्ष इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या संसद इस गंभीर विषय पर कोई ठोस नीति या संवाद की दिशा में आगे बढ़ती है।