Report By: Kiran Prakash Singh
छत्तीसगढ़,
के नारायणपुर जिले में दो ननों की गिरफ्तारी ने राजनीतिक हलकों में उबाल ला दिया है, मामला न केवल धार्मिक स्वतंत्रता और महिला अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि केंद्र सरकार की अल्पसंख्यकों के प्रति नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रहा है, इस मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव और सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने दिल्ली के संसद परिसर के बाहर बुधवार को विरोध प्रदर्शन कर सरकार को कटघरे में खड़ा किया।
“ये महिलाएं हैं, अपराधी नहीं”: प्रियंका गांधी
प्रदर्शन के दौरान प्रियंका गांधी ने कहा:
“हम अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का विरोध कर रहे हैं, ये मामला सिर्फ धर्म का नहीं, महिला अधिकारों का भी है, जब तक इंसाफ नहीं होगा, हम चुप नहीं बैठेंगे।”
प्रियंका गांधी का यह बयान एक भावनात्मक लेकिन सटीक संदेश था — सरकार को चेतावनी भी, और समर्थन की पुकार भी।
क्या है मामला?
25 जुलाई को छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन से केरल की दो नन, सिस्टर प्रीथी मैरी और सिस्टर वंदना फ्रांसिस, तथा एक व्यक्ति सकुमन मंदावी को गिरफ्तार किया गया। आरोप लगाया गया, कि वे नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले की तीन आदिवासी लड़कियों को आगरा (उत्तर प्रदेश) ले जा रहे थे, स्थानीय बजरंग दल कार्यकर्ता की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया, जिसमें धर्मांतरण और मानव तस्करी का आरोप लगाया गया।
हालाँकि, अभी तक कोई पुख़्ता प्रमाण सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आया है।
संसद से सड़क तक संघर्ष
प्रियंका गांधी ने साफ किया कि यह मुद्दा वह सिर्फ सड़क पर नहीं, संसद में भी लगातार उठाएंगी, उन्होंने कहा:
“सरकार चाहे चुप रहे, हम नहीं रहेंगे, यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हर उस महिला, हर उस अल्पसंख्यक की आवाज़ बनें जिसके साथ अन्याय हुआ है।”
वायनाड के पीड़ितों की भी उठी आवाज
इसी विरोध के दौरान प्रियंका गांधी ने अपने लोकसभा क्षेत्र वायनाड की पीड़ा भी उठाई, उन्होंने बताया कि एक साल पहले हुए भूस्खलन के बाद भी पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा नहीं मिला। केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई सहायता कर्ज के रूप में दी गई, जो कि लोगों के लिए एक और बोझ बन गई।
“जब ज़िंदगी पहले से ही टूटी हुई है, तो सरकार लोगों पर कर्ज का बोझ क्यों डाल रही है? उसे माफ़ किया जाना चाहिए,” उन्होंने कहा।
निष्कर्ष:
यह मुद्दा अब सिर्फ एक गिरफ्तारी का नहीं रहा, यह बन चुका है धर्म, राजनीति, महिला अधिकार और सामाजिक न्याय का संगम।
प्रियंका गांधी की संसद के बाहर यह चेतावनी —
“हम खामोश नहीं बैठेंगे,”
— अब विपक्ष की आवाज़ ही नहीं, उस हर व्यक्ति की उम्मीद भी बन रही है जिसे लगता है, कि सत्ता की कार्रवाई कहीं न कहीं संवेदनाओं को कुचल रही है।