Report By: Kiran Prakash Singh
नई दिल्ली (Digitallive):
भारत सरकार ने स्पष्ट किया है,कि उसका उद्देश्य देश की समृद्ध स्ट्रीट फूड संस्कृति को किसी भी प्रकार से लक्षित करना नहीं है। हाल ही में सोशल मीडिया और विभिन्न प्लेटफार्मों पर यह भ्रम फैल गया था कि स्वास्थ्य मंत्रालय समोसा, जलेबी और अन्य पारंपरिक खाद्य उत्पादों पर चेतावनी लेबल लगाने की तैयारी कर रहा है। अब मंत्रालय ने इन खबरों को सिरे से खारिज करते हुए स्थिति स्पष्ट की है।
📜 क्या था मामला?
21 जून को स्वास्थ्य सचिव की ओर से सभी सरकारी विभागों, कार्यालयों और स्वायत्त संस्थानों को एक पत्र भेजा गया था। इसमें कार्यस्थलों पर स्वस्थ भोजन और जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता बोर्ड लगाने और स्टेशनरी पर स्वास्थ्य संदेश छापने की सलाह दी गई थी।
हालांकि, इस सामान्य सलाह को कुछ लोगों ने समोसा-जलेबी जैसे लोकप्रिय भारतीय स्नैक्स पर संभावित प्रतिबंध या चेतावनी के रूप में देखा। इसके बाद सोशल मीडिया पर एक बहस छिड़ गई, जिसमें पारंपरिक भारतीय खानपान को लेकर चिंता जताई गई।
🗣 मंत्रालय ने क्या कहा?
स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा,
“यह किसी विशेष खाद्य पदार्थ के खिलाफ निर्देश नहीं है। हमारा उद्देश्य मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग जैसी गैर-संचारी बीमारियों (NCDs) के खतरे को कम करने के लिए सामान्य स्वास्थ्य जागरूकता फैलाना है।”
मंत्रालय ने यह भी दोहराया कि भारत की विविध और समृद्ध स्ट्रीट फूड संस्कृति पर किसी भी तरह की रोक लगाने या उसे लक्षित करने की कोई योजना नहीं है।
⚠️ क्यों ज़रूरी है जागरूकता?
लैंसेट जीबीडी 2021 (Lancet GBD 2021) की रिपोर्ट के अनुसार, यदि वर्तमान जीवनशैली और खानपान की आदतें जारी रहीं, तो 2050 तक भारत में मोटापे से पीड़ित वयस्कों की संख्या 44.9 करोड़ तक पहुंच सकती है। यही वजह है कि सरकार लोगों को संतुलित आहार और सक्रिय जीवनशैली के प्रति प्रेरित कर रही है।
निष्कर्ष:
यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल का मकसद लोगों को किसी खास व्यंजन से दूर करना नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। समोसा, जलेबी जैसे स्वादिष्ट व्यंजन भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं, और सरकार इन्हें खत्म नहीं करना चाहती—बल्कि संतुलन और जागरूकता को बढ़ावा देना चाहती है।