Report By: Kiran Prakash Singh
नई दिल्ली,(digitallivenews) 11 अगस्त:
संसद के मानसून सत्र में सोमवार को जब विपक्ष ने वोटर वेरिफिकेशन, एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) और वोट चोरी के आरोपों को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया, तब संसदीय कार्य मंत्री किरन रिजिजू ने विपक्ष और खासतौर पर राहुल गांधी पर तीखा हमला बोला। रिजिजू ने संसद में विपक्ष के हंगामे को “समय की बर्बादी” बताया और कहा कि यह सब एक “परिवार की नासमझी” के कारण हो रहा है।
हिरासत और हंगामे की पृष्ठभूमि
इससे पहले दिन में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव और अन्य विपक्षी नेताओं को दिल्ली पुलिस ने उस समय हिरासत में लिया जब वे संसद से चुनाव आयोग तक विरोध मार्च निकाल रहे थे। इस मार्च को लेकर विपक्ष ने दावा किया कि चुनाव आयोग की एसआईआर प्रक्रिया में धांधली हो रही है और वोटर लिस्ट से नाम हटाए जा रहे हैं।
रिजिजू का तीखा बयान
लोकसभा में बहस के दौरान रिजिजू ने कहा:
“एक आदमी की नासमझी और एक परिवार की वजह से देश और संसद को नुकसान नहीं सहना चाहिए। राहुल गांधी को बहुत देख लिया, वह सुधर नहीं सकते। अब हम देश का समय बर्बाद नहीं होने देंगे।“
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास नहीं करता, और केवल नारेबाज़ी और नाटक करने में लगा है। उन्होंने कहा कि लोग अपने जनप्रतिनिधियों को संसद में इसलिए भेजते हैं कि वे जनहित के मुद्दे उठाएं, लेकिन विपक्षी सांसद चर्चा की जगह हेडलाइनों के पीछे भाग रहे हैं।
महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा की अपील
किरन रिजिजू ने कहा कि संसद में कई अहम विधेयक लंबित हैं और सरकार चर्चा को लेकर तैयार है, लेकिन विपक्ष बार-बार व्यवधान डाल रहा है। उन्होंने विपक्ष को चर्चा में हिस्सा लेने और लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने की अपील की।
चुनाव आयोग से मुलाकात को लेकर सवाल
रिजिजू ने विपक्ष पर यह भी आरोप लगाया कि वे चुनाव आयोग से मिलने की बात कर रहे हैं लेकिन आपसी समन्वय की कमी के कारण कोई ठोस पहल नहीं कर पा रहे। उन्होंने कहा कि संसद को राजनीतिक ड्रामा का मंच नहीं बनने दिया जाएगा।
निष्कर्ष
संसद का मानसून सत्र जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, विपक्ष और सरकार के बीच टकराव और गहराता जा रहा है। जहां विपक्ष चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग कर रहा है, वहीं सरकार इसे राजनीतिक नौटंकी बता रही है। संसदीय कार्य मंत्री का यह बयान साफ संकेत देता है कि सरकार अब विपक्ष के विरोध को “गंभीर संवाद” नहीं, बल्कि सिर्फ विरोध की राजनीति मान रही है।