Report By: Kiran Prakash Singh
पिछले 17 सालों में मुझे बहुत अपमान सहना पड़ा-साध्वी प्रज्ञा सिंह
मुंबई, (digitallivenews)।
मालेगांव | 29 सितंबर 2008 – 31 जुलाई 2025
मालेगांव बम विस्फोट मामले में 17 वर्षों की लंबी अदालती प्रक्रिया, हजारों दस्तावेजी साक्ष्य और सैकड़ों गवाहों की गवाही के बाद आखिरकार अदालत का फैसला सामने आ गया। एनआईए (NIA) की विशेष अदालत ने इस बहुचर्चित केस में सभी सात आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया है।
क्या हुआ था 29 सितंबर 2008 को?
महाराष्ट्र के मालेगांव शहर के अंजुमन चौक और भीकू चौक के बीच स्थित शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के पास रात 9:35 बजे एक जोरदार विस्फोट हुआ था। यह धमाका इतना भीषण था कि 6 निर्दोष नागरिकों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। विस्फोट के बाद पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल बन गया था।
बरी हुए सभी आरोपी
इस मामले में जिन आरोपियों को बरी किया गया है, उनमें प्रमुख रूप से भोपाल से भाजपा सांसद रह चुकीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और सेना के अधिकारी कर्नल श्रीकांत पुरोहित शामिल हैं। इनके अलावा अन्य पाँच अभियुक्तों को भी अदालत ने साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया है।
साध्वी प्रज्ञा की प्रतिक्रिया: “हर दिन मरी हूं, आज जी रही हूं”
फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा:
“पिछले 17 सालों में मैंने बहुत अपमान सहा है। अपने ही देश में मुझे आतंकवादी कहा गया। शायद मैं बच गई क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं, लेकिन मैं हर दिन मरी हूं। आज मुझे लगता है कि मेरी आवाज किसी ने सुनी है। आज हिंदुत्व की जीत हुई है, भगवा की विजय हुई है।”
सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद
इस संवेदनशील फैसले के मद्देनज़र मालेगांव पुलिस अलर्ट मोड पर है। शहर में अतिरिक्त पुलिसबल की तैनाती की गई है और हर चौक-चौराहे पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है ताकि कोई अप्रिय स्थिति उत्पन्न न हो। महाराष्ट्र पुलिस भी इस पूरे मामले पर नजर बनाए हुए है।
देशभर में फैसले की चर्चा
मालेगांव विस्फोट मामला एक राजनीतिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील मुद्दा रहा है। फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों और जनता के बीच प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। कुछ लोग इसे न्याय की जीत बता रहे हैं, तो कुछ लोगों ने जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
निष्कर्ष:
मालेगांव बम विस्फोट केस का फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जा सकता है। 17 वर्षों के इंतजार के बाद, अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। अब इस फैसले के बाद आने वाले राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों पर देशभर की नजर टिकी हुई है।