Report By: Kiran Prakash Singh
साल 2025, भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव अपने चरम पर था, ऑपरेशन सिंदूर — भारत की एक सटीक और रणनीतिक सैन्य कार्रवाई — दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी, लेकिन संसद के भीतर इसकी चर्चा और भी ज्यादा तीखी थी, उस दिन विपक्ष के नेता राहुल गांधी लोकसभा में खड़े हुए, और एक के बाद एक सवालों की बौछार कर दी — प्रधानमंत्री पर, सरकार पर और उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति पर।
“टाइगर को आज़ादी दो”: राहुल गांधी का गर्जन
राहुल गांधी ने संसद में खड़े होकर एक बिंदु पर बेहद भावुक होते हुए कहा:
“टाइगर को आज़ादी देनी पड़ती है, उसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए।”
यह सिर्फ एक वाक्य नहीं था, यह एक संदेश था — एक चुनौती थी।
उन्होंने कहा कि सेना की ताकत पर सवाल नहीं है, सवाल है उसे खुलकर काम करने देने की, उन्होंने प्रधानमंत्री की तुलना अपनी दादी, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से की और कहा:
“1971 में इंदिरा गांधी ने अमेरिका की परवाह नहीं की थी, और एक लाख पाकिस्तानी सैनिकों ने सरेंडर किया था, अगर प्रधानमंत्री इंदिरा जी के 50 प्रतिशत भी दम रखते हैं, तो खड़े होकर कहें कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं।”
ट्रंप पर सवाल, मोदी से जवाब की मांग
राहुल गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों का हवाला देते हुए कहा:
“ट्रंप ने 29 बार कहा कि हमने भारत-पाकिस्तान में युद्ध रोका, अगर ये झूठ है, तो प्रधानमंत्री इस सदन में आकर कहें कि ट्रंप झूठ बोलते हैं।”
यह सवाल सीधा था, और प्रधानमंत्री से सार्वजनिक खंडन की मांग की गई, राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि सरकार ने 35 मिनट में ही पाकिस्तान के सामने “सरेंडर” कर दिया और यह दर्शाता है कि उनके पास राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है।
रक्षा मंत्री का हवाला, पायलट्स की आज़ादी का मुद्दा
राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री के उस बयान को भी कटघरे में खड़ा किया जिसमें उन्होंने कहा था, कि भारत ने रात 1:35 बजे पाकिस्तान को सूचित कर दिया था कि यह हमला एस्केलेटरी (विस्तारित संघर्ष) नहीं है। राहुल गांधी ने इस पर व्यंग्य करते हुए कहा:
“आपने खुद ही बता दिया कि एस्केलेशन नहीं चाहिए, यानी आप पहले ही डर गए।”
उन्होंने कहा कि सरकार ने सेना और वायुसेना के पायलट्स के “हाथ-पांव बांध दिए” और उनके पराक्रम को सीमित कर दिया।
एकजुट विपक्ष, दोहरा संदेश
राहुल गांधी ने यह भी स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत से पहले ही विपक्ष ने समर्थन की प्रतिबद्धता जताई थी, उन्होंने कहा:
“हम सेना और सरकार के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे, लेकिन जवाबी कार्रवाई सिर्फ सैन्य ताकत से नहीं होती, उसके पीछे राजनीतिक हिम्मत चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ नेताओं की व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के बावजूद विपक्ष शांत रहा और देशहित में एकजुटता दिखाई।
पीड़ित परिवारों से मुलाकात: “ये टाइगर है”
राहुल गांधी ने उस दर्द का जिक्र किया, जो उन्होंने पहलगाम, यूपी और कश्मीर के उन परिवारों की आंखों में देखा, जिन्होंने अपनों को आतंकी हमलों में खो दिया, उन्होंने कहा:
“जब आप किसी पीड़ित से मिलते हैं, हाथ मिलाते हैं, तो महसूस होता है — ये टाइगर है,और टाइगर को खुला मैदान चाहिए।”
निष्कर्ष:
राहुल गांधी का यह भाषण सिर्फ सरकार पर हमला नहीं था — यह एक गहरी राजनीतिक और भावनात्मक अपील थी, यह एक नेता की आवाज़ थी, जो कह रहा था, कि सिर्फ गोली नहीं, गारंटी भी दो।
जो यह चाह रहा था कि देश की सेना को सिर्फ समर्थन नहीं, स्वायत्तता भी मिले।
और जो बार-बार कह रहा था — “अगर दम है, तो ट्रंप को झूठा साबित करके दिखाओ।”
यह संसद की बहस नहीं, एक राजनीतिक युद्ध की शुरुआत थी — साहस बनाम नियंत्रण, इच्छाशक्ति बनाम सीमाएं।
और देश देख रहा था — कि क्या टाइगर को आज़ादी मिलेगी?