Report By: Kiran Prakash Singh
राहुल गांधी कहा-खूब पढ़ाई करो,खेलो और दोस्त बनाओ,सोशल मीडिया पर हो रही तारीफ
साल 2025, मई की एक उदास सुबह, जम्मू-कश्मीर के पूंछ जिले में गूंजती गोलियों और धमाकों ने कई घरों को खामोश कर दिया, इस गोलाबारी में 22 मासूम बच्चे अनाथ हो गए — कुछ ने मां-बाप दोनों को खो दिया, कुछ ने अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले को।
इन बच्चों की ज़िंदगी अचानक अंधेरे में डूब गई।
लेकिन ऐसे ही कठिन समय में एक उम्मीद की किरण उभरी — राहुल गांधी।
पूंछ का दौरा: आँसू और साहस का सामना
मई के अंतिम सप्ताह में राहुल गांधी ने पूंछ का दौरा किया, वहां उन्होंने उन परिवारों से मुलाकात की जो अभी भी अपने नुकसान से उबरने की कोशिश कर रहे थे, 12 साल के जुड़वां भाई-बहन, उरबा फातिमा और ज़ैन अली की कहानी ने उन्हें झकझोर दिया, वे क्राइस्ट पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे और इस हमले में जान गंवा बैठे।
राहुल गांधी उनके सहपाठियों से मिले, छोटे-छोटे बच्चों की डबडबाई आंखों में डर और ग़ुस्सा दोनों था, उन्होंने बच्चों को गले लगाया, उनके सिर पर हाथ रखा और कहा:
“मुझे तुम पर गर्व है, डरने की जरूरत नहीं, सब ठीक हो जाएगा,खूब पढ़ाई करो, खेलो और दोस्त बनाओ।”
एक मानवीय पहल: 22 बच्चों को गोद लिया
राहुल गांधी ने स्थानीय कांग्रेस नेताओं और प्रशासन से बात की और उन बच्चों की सूची तैयार करवाई, जिन्होंने इस गोलीबारी में अपने अभिभावकों को खोया था, यह एक लंबा और संवेदनशील सर्वे था, जब सूची पूरी हुई, तो उसमें 22 नाम थे — 22 अधूरी कहानियां।
राहुल गांधी ने इन सभी बच्चों को गोद लेने का निर्णय लिया।
उनका संकल्प था, कि ये बच्चे स्नातक (ग्रेजुएशन) तक की पढ़ाई कर सकें, बिना किसी आर्थिक चिंता के, उन्होंने पहली किस्त की सहायता राशि जारी करने के निर्देश दिए ताकि इन बच्चों की शिक्षा बिना रुके जारी रह सके।
सिर्फ राजनीति नहीं, इंसानियत का कदम
इस पहल को लेकर सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रिया आई, लोगों ने राहुल गांधी के इस कदम को “बिना प्रचार के की गई सच्ची सेवा” बताया, सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले हजारों लोग, जो रोज़ गोलियों की आवाज़ के बीच ज़िंदगी जीते हैं, उनके लिए यह कदम उम्मीद की नई किरण जैसा था।
जम्मू-कश्मीर कांग्रेस अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने बताया:
“राहुल गांधी ने इन बच्चों की शिक्षा और देखभाल का ज़िम्मा खुद उठाया है, ये कोई दिखावटी घोषणा नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर की गई एक सच्ची कोशिश है।”
उम्मीद की कहानी
आज भी पूंछ के स्कूलों में जब घंटी बजती है, तो उन 22 चेहरों की कमी जरूर महसूस होती है, लेकिन उनके भाई-बहनों, दोस्तों, और पूरे गांव को अब ये भरोसा है — कोई है जो उनके साथ खड़ा है।
राहुल गांधी का यह कदम केवल कुछ बच्चों की मदद नहीं है, यह एक संदेश है: “जब राजनीति से ऊपर उठकर इंसानियत बोली जाती है, तब देश की आत्मा बोलती है।”
निष्कर्ष:
यह कहानी एक नेता की नहीं, एक इंसान की है, जो युद्ध की चीखों के बीच, कुछ बच्चों को फिर से हँसता हुआ देखना चाहता है, यह कहानी बताती है, कि इंसान होने के नाते हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी क्या है — दर्द बांटना, और जहां हो सके, ज़िंदगी को दोबारा संवार देना।