Report By: Kiran Prakash Singh
🎬 “20 रुपये का शोले टिकट और रात की नीरवता में जागता एक कलाकार” — अमिताभ बच्चन की यादों का एक अनमोल टुकड़ा
बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने हाल ही में अपने ब्लॉग पर एक पुरानी लेकिन बेहद भावुक करने वाली याद साझा की। उन्होंने 1975 की अपनी आइकॉनिक फिल्म ‘शोले’ के एक टिकट की तस्वीर पोस्ट की — जिसकी कीमत मात्र 20 रुपये थी। इस छोटे से कागज का टुकड़ा ना सिर्फ एक दौर की कहानी कहता है, बल्कि सिनेमा के बदलते स्वरूप की भी गवाही देता है।
“शोले का टिकट… जिसे संभाल कर रखा गया है,” बिग बी ने लिखा।
इस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि आज एक सिनेमा हॉल में एक कोल्ड ड्रिंक की कीमत भी इतनी ही हो गई है। उन्होंने चुटकी लेते हुए सवाल किया —
“क्या ये सच है?”
और साथ ही उन्होंने जोड़ा —
“बहुत कुछ कहने को है, लेकिन कह नहीं रहा… प्यार और सम्मान।”
🎞️ शोले – सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक युग
1975 में रिलीज हुई रमेश सिप्पी की ‘शोले’ को भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी क्लासिक फिल्मों में शुमार किया जाता है। जय और वीरू की दोस्ती, ठाकुर बलदेव सिंह का प्रतिशोध और गब्बर सिंह का आतंक — इन किरदारों और संवादों ने दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी।
अमिताभ बच्चन द्वारा निभाया गया ‘जय’ का किरदार आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार पात्रों में से एक है। उन्होंने इस ब्लॉग पोस्ट में उस दौर के प्रति अपना आदर और भावनात्मक जुड़ाव भी प्रकट किया।
🌙 रात की नीरवता और रचनात्मकता का रहस्य
ब्लॉग के दूसरे हिस्से में बिग बी ने उस समय का ज़िक्र किया जब कलाकार अकेले में अपने विचारों से संवाद करता है।
उन्होंने लिखा:
“ये वह समय होता है जब खामोशी होती है और हम जागे हुए होते हैं… ये एक रहस्य है, है ना?”
अमिताभ के अनुसार, रात की शांति में सोचने और समझने की शक्ति कहीं अधिक स्पष्ट होती है।
“शोर के बीच अकेलेपन की अनुभूति और शांति में विचारों की स्पष्टता, मुझे लेखन और आत्ममंथन के लिए सबसे उपयुक्त लगती है।”
🏡 जलसा के बाहर फैंस से मुलाकात
इस ब्लॉग पोस्ट के साथ उन्होंने मुंबई स्थित अपने निवास ‘जलसा’ के बाहर प्रशंसकों से हुई साप्ताहिक मुलाकात की कुछ तस्वीरें भी साझा कीं। ये तस्वीरें यह दर्शाती हैं कि दशकों बाद भी अमिताभ बच्चन का स्टारडम और लोगों के दिलों में उनके लिए प्यार कम नहीं हुआ है।
📌 एक टिकट, कई यादें…
अमिताभ बच्चन का यह ब्लॉग ना सिर्फ एक पुराने टिकट की बात करता है, बल्कि उस दौर की सादगी, आज के समय की जटिलता और कलाकार की सोच के गहरे पहलुओं को भी उजागर करता है।
20 रुपये के उस टिकट में एक युग छिपा है — और उस युग में एक कलाकार की आत्मा।